शुक्रवार को देवउठानी एकादशी, देवोत्थान के बाद भी नहीं होंगे मांगलिक कार्य : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

शुक्रवार को देवउठानी एकादशी, देवोत्थान के बाद भी नहीं होंगे मांगलिक कार्य : स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

4 नवंबर शुक्रवार को देवउठनी एकादशी पर्व

अलीगढ़ न्यूज़: सनातन धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठानी एकादशी अथवा देवोत्थान के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन श्रीहरि चार माह बाद योग निद्रा से जागते हैं और चातुर्मास की समाप्ति होती है और रुके हुए सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस बार 4 नवंबर शुक्रवार को देवउठनी एकादशी पर्व मनाया जाएगा। यह जानकारी वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने दी।

स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि देवउठनी एकादशी का अपना एक विशेष महत्व है इस व्रत को करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु के बाद बैकुंठ का अधिकारी बनता है। मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने एकादशी की महत्ता के बारे में युधिष्ठिर से कहा कि देवउठनी एकादशी पर प्रदोष काल में गन्ने का मंडप बनाकर श्रीहरि के स्वरूप शालीग्राम और तुलसी विवाह के बाद कथा का श्रवण करने मात्र से पाप कर्म खत्म हो जाता है। और इस दिन से सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य भी प्रारंभ हो जाते है।

19 जनवरी से होंगे सभी मांगलिक कार्य पुनः प्रारंभ

लेकिन इस बार देवोत्थान के बाद भी शुक्र अस्त होने के कारण 24 नवंबर तक सभी मांगलिक कार्य बाधित रहेंगे तत्पश्चात पाणिग्रहण हेतु शुभ मुहूर्त 28 नवंबर, 2, 3, 5 ,7, 8, 9 यानि इस वर्ष कुल 7 शुभ मुहूर्त मिलेंगे उसके बाद खरमास लगने के कारण 18 जनवरी तक कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होगा। 19 जनवरी से सभी मांगलिक कार्यों को पुनः प्रारंभ किया जाएगा।

स्वामी जी ने देवोत्थान पूजा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस दिन ब्रह्म मुहू्र्त में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करते हुए व्रत का संकल्प लें। सायं काल में  पूजा स्थल पर घी के 11 दीपक जलाकर यदि संभव हो तो गन्ने का मंडप बनाकर बीच में विष्णु जी की मूर्ति रखें और गन्ना, सिंघाड़ा, लड्डू, जैसे मौसमी फल का भोग लगाएं रात्रि काल में भगवान विष्णु समेत सभी देव दावताओं का पूजन करना चाहिए इसके बाद शंख और घंटियां बजाकर भगावन विष्णु को उठाना चाहिए।

देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह का विधान

अगले दिन हरि वासर समाप्त होने के बाद ही व्रत का पारण करें। देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह का विधान है। तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय है और भगवान विष्णु की तुलसी के बिना भगवान विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है माना जाता है कि जिन दंपत्तियों की कन्या नहीं होती उन्हें अपने जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान जरूर करना चाहिए इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

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