ईर्ष्या रहित मन से करें हरि की आराधना: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

ईर्ष्या रहित मन से करें हरि की आराधना: स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज

अलीगढ़:  गत सप्ताह से कस्तली पला में चल रही श्रीमद भागवत कथा महोत्सव के अंतिम दिन की कथा में कथा व्यास ने दिव्य महारास का पावन प्रसंग, गोपी उद्धव प्रसंग की कथा का श्रवण कराया।

परम पूज्य स्वामी श्री पूर्णानंद पुरी जी महाराज के पावन आशीर्वाद से परमहंस गौशाला कस्तली पला के तत्वाधान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन की कथा सुनाते हुए कथा व्यास आचार्य शिवम शास्त्री ने कहा कि आत्मा परमात्मा के मिलन का जो मधुमास है वही महारास है, भगवान की वंशी दो बार बजी एक प्राणी मात्र के लिए बजाई जिसे सुनकर प्राणी मात्र मोहित हो गए पाषाण द्रवी भूत हो गए यमुना की धारा स्तब्ध हो गई।

सारा त्रिभुवन मोहित हो गया और जब भगवान ने रास करने के लिए बंसी बजाई बंसी केवल ब्रज की गोपियों ने सुना यह गोपिया कोई साधारण सी स्त्रियां नहीं है बड़े-बड़े दिव्य वितराग संत जो दंडकारण्य में विचरण कर रहे थे श्री रामभद्र के रूप को देखकर मोहित हो गए वे सब सिद्ध कोटि के संत ब्रज की गोपियों बनकर आए और इस दिव्य महारास के रस का रसास्वादन करने के लिए प्रतीक्षा करते आज किसी के रोक कैसे रुक सकते हैं जो निरंतर ही कृष्ण रस का ही पान करें यह वही गोपिया हैं। ऐसे दिव्य महारास में भगवान भोलेनाथ स्वयं गोपी बनाकर के आए जो वृंदावन में गोपेश्वर महादेव के नाम से जाने गए आज भी भगवान का गोपी स्वरूप में दर्शन होता है।

भगवान को अपने जब गोकुल वृंदावन की याद आई तो भगवान ने उद्धव जी को वृंदावन भेजा सभी ब्रज वासियों का कुशल छेम पूछने के लिए ज्ञान पाठ पढ़ाने के लिए उद्धव वृंदावन आए और गोपियों को जब ज्ञान का मार्गदर्शन कराया वहां से प्रेम की रंग में रंग कर उद्धव जी लौटे वृंदावन में प्रेम निवास करते हैं। भक्त निवास करते हैं।

जरासंध ने 17 बार आक्रमण किया मथुरा नगरी पर 18वीं बार में भगवान रन छोड़कर के चले समुद्र की शरण ली 25 वर्ष की अवस्था भगवान द्वारिका के राजा बने विदर्भ देश की राजकुमारी रुक्मिणी से सुन्दर पाणिग्रहण हुआ।

कथा की पूर्व संध्या पर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से कहा कि व्यक्ति के अंदर ईर्ष्या भाव बिल्कुल उत्पन्न नहीं होना चाहिए, भगवान की भक्ति में सदैव मन को लगाकर श्रीमद भागवत कथा का रसपान करना चाहिए।

कथा में तूलिका अग्रवाल, नन्नूमल, आरके शर्मा जी, हरिओम अग्रवाल जी, आयोजक कर्ता पूरन चंद्र अग्रवाल, सुभाष चंद्र अग्रवाल, अमित जी, कुलदीप जी, अनिल गुप्ता, तेजवीर सिंह, नवीन चौधरी, आचार्य गौरव शास्त्री जी, आचार्य बलदेव जी, आचार्य चेतन सहित अनेकों लोग उपस्थित रहे।

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