निर्जला एकादशी व्रत से मिलता है सभी एकदशी व्रत का फल: स्वामी पूर्णानन्द पुरी

निर्जला एकादशी व्रत से मिलता है सभी एकदशी व्रत का फल: स्वामी पूर्णानन्द पुरी

अलीगढ: सनातन धर्म में सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशियों में से एक, इस वर्ष 6 जून 2025 को मनाई जाएगी। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ने वाला यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है, जिससे भक्तों को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत बिना जल और अन्न के किया जाता है, यही वजह है कि इसे साल की सबसे बडी एकादशी कहा जाता है। उक्त जानकारी वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी पूर्णानन्द पुरी जी ने दी।

निर्जला एकादशी व्रत का पूरे सालभर तक लोग इंतजार करते हैं क्योंकि यह व्रत पूरे साल की एकादशी का फल एकबार में प्रदान कर देता है. इस बार निर्जला एकादशी व्रत की तारीख को लेकर लोगों में संशय की स्थिति बनी हुई है। निर्जला एकादशी का व्रत 6 या 7 जून दोनों में से कब मनाएं इस संशय का निवारण करते हुए स्वामी जी ने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी ति​थि को रखते हैं, लेकिन कई बार तिथि और हरिवासर समय की वजह से एकादशी व्रत दो दिनों का हो जाता है।

इस वजह से लोगों में संशय की स्थिति बन जाती है। इस साल निर्जला एकादशी तिथि आज 06 जून शुक्रवार प्रातः 02:15 बजे से प्रारम्भ हो चुकी है जोकि 7 जून रविवार को सूर्योदय से पूर्व ही 04:47 पर समाप्त हो जाएगी ऐसे में उदयातिथि एवं दशमी भेदी न होने के कारण गृहस्थ एवं वैष्णव जनों का निर्विवाद रूप से निर्जला एकादशी का व्रत आज 06 जून को रहेगा।

स्वामी जी आगे बताया कि इस व्रत के करने से व्यक्ति कि मनोकामना पूर्ण होने के साथ ही भगवान की भक्ति और प्रीति प्राप्त हो जाती है धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार शौनक आदि ऋषियों ने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी की कथा जानने की इच्छा व्यक्त की।

तब सूतजी ने बताया कि एक बार भीमसेन ने महर्षि व्यास से कहा हे पितामह! मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी को व्रत करते हैं, परंतु मैं बिना भोजन किए नहीं रह सकता। मेरा पेट अग्नि के समान है, जो अधिक भोजन से ही शांत होता है। कृपया कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मैं व्रत का पुण्य भी पा सकूं और भूखा भी न रहूं।

महर्षि व्यास ने कहा -हे भीमसेन! यदि तुम पूरे वर्ष केवल एक व्रत करना चाहते हो, तो ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जल रहकर उपवास करो। इस दिन जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। केवल आचमन के लिए 6 माशे (लगभग 24 मिली) से अधिक जल न लें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।

सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना जल के व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन जल का विशेष महत्व होता है। इस दिन मिट्टी या तांबे के पात्र में जल भरकर दान देना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इसे जीवनदाता और पापनाशक कहा गया है। जलदान से प्यासे प्राणियों की सेवा होती है और व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की वृद्धि होती है।

गर्मी के मौसम में सूर्य की तीव्र किरणों से बचाव के लिए छाते का दान बहुत उपयोगी होता है। यह दान किसी राहगीर, साधु या ज़रूरतमंद को दिया जाए तो उससे अत्यधिक पुण्य मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि छाता दान करने से व्यक्ति को भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

पैदल चलने वालों के लिए जूते या चप्पल किसी वरदान से कम नहीं होते। इस दिन जरूरतमंद को चप्पल या जूते दान करना पापों का नाश करता है और जीवन की बाधाओं को दूर करता है।वस्त्र दान करना बहुत शुभ होता है। खासकर गेरुए या सफेद वस्त्र ब्राह्मणों या साधु-संतों को दान करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। यह दान दरिद्रता को दूर करता है और लक्ष्मी कृपा प्रदान करता है।

गर्मियों में पंखा कूलर दान करना एक सेवा के रूप में माना गया है। निर्जला एकादशी पर पंखा दान करने से वातावरण की गर्मी से राहत मिलती है और यह कार्य व्यक्ति के भीतर दया और करुणा को बढ़ाता है।इस दिन किसी ब्राह्मण, साधु या गरीब को फल या मिठाई का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में इसे अन्नदान की तरह महत्वपूर्ण माना गया है। यह व्यक्ति के जीवन में मधुरता और सौभाग्य लाता है।

गाय को गौमाता माना गया है और उसे हरा चारा, गुड़ या पानी पिलाना पुण्यदायी कार्य है। निर्जला एकादशी के दिन ऐसा करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।गर्मी के मौसम में प्यासे लोगों को ठंडा पानी, शर्बत या बेल का रस पिलाना बहुत पुण्य का कार्य है। विशेष रूप से निर्जला एकादशी पर इस सेवा को अत्यधिक फलदायी माना गया है। इससे जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा आती है।

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